मै लेने चली अपनी वो मुस्कराहट।
वो खनक वो खिलखिलाहट …
जो खो गई वक्त के थपेड़ों में।
मासूम थी वो , सुकोमल तन्वंगी सी वो ,
कब जवां हुई कुछ खबर तो नहीं,
हाँ दूर छितिज से झाँकती नजर तो आती है।
इतराती, इठलाती , बलखाती बस यूँ ही ,
ललचाती जाती है।
मचलती हूँ , दौड़ती हूँ पकड़ने उसे ,
किन्तु हा ,,,,,, छा गया घना कोहरा।
आँखें अब मजबूर ,
नजर नहीं आ रहा कुछ दूर- दूर।
पर नहीं कोई गम है,
निराशा फिर भी कम है,
हार तो न मानूंगी , हताशा भी ना जानूंगी।
धुंध के उसपार भी कुछ मुस्कुराते पुष्प नजर आते हैं
प्यार, स्नेह ,मासूमियत लिए ,जीवंत प्रेरणा जगाते हैं।
स्तब्ध निशा जीवंत उच्छवासों को हरा तो न पाएगी ,
ह्रदय में हिलोरे लें जजबात , अहसास तो स्वर्णिम उषा ही आएगी।
लो भोर भी हो गई.....
उषा नव खनक फिर भर लायी ,m
कोहरे की धुंध अब छट पड़ी है।
सप्त आसमान पर इन्द्रधनुष मुस्कुरा उठे ,
प्राची की लालिमा भी मुक्त हास कर उठी।
कुदरत की नियामत है।
कभी धुंध ,कोहरा ,निशा फिर उषा।
कुछ हसंते ,कुछ ग़मगीन लम्हे,
विरोधाभास अटल सच्चाई ,यही जीवन क्रम है।
यही जीवन क्रम है।
वो खनक वो खिलखिलाहट …
जो खो गई वक्त के थपेड़ों में।
मासूम थी वो , सुकोमल तन्वंगी सी वो ,
कब जवां हुई कुछ खबर तो नहीं,
हाँ दूर छितिज से झाँकती नजर तो आती है।
इतराती, इठलाती , बलखाती बस यूँ ही ,
ललचाती जाती है।
मचलती हूँ , दौड़ती हूँ पकड़ने उसे ,
किन्तु हा ,,,,,, छा गया घना कोहरा।
आँखें अब मजबूर ,
नजर नहीं आ रहा कुछ दूर- दूर।
पर नहीं कोई गम है,
निराशा फिर भी कम है,
हार तो न मानूंगी , हताशा भी ना जानूंगी।
धुंध के उसपार भी कुछ मुस्कुराते पुष्प नजर आते हैं
प्यार, स्नेह ,मासूमियत लिए ,जीवंत प्रेरणा जगाते हैं।
स्तब्ध निशा जीवंत उच्छवासों को हरा तो न पाएगी ,
ह्रदय में हिलोरे लें जजबात , अहसास तो स्वर्णिम उषा ही आएगी।
लो भोर भी हो गई.....
उषा नव खनक फिर भर लायी ,m
कोहरे की धुंध अब छट पड़ी है।
सप्त आसमान पर इन्द्रधनुष मुस्कुरा उठे ,
प्राची की लालिमा भी मुक्त हास कर उठी।
कुदरत की नियामत है।
कभी धुंध ,कोहरा ,निशा फिर उषा।
कुछ हसंते ,कुछ ग़मगीन लम्हे,
विरोधाभास अटल सच्चाई ,यही जीवन क्रम है।
यही जीवन क्रम है।